Tuesday, September 18, 2012

लोरी, गीत और कविताएँ

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(घर से आज ही लौटा, अंजुरी भर कविताओं के साथ जो मेरी मम्मी देव-दीप को रोज सुनाती है। ये दोनों भी मगन होकर सुनते हैं, खिलखिलाते हैं और आगे सुनाने की दरख़्वास्त भी करते हैं-‘दादी अउर, दादी अउरी’)

1.    
चउक-चउक चलनी
पानी भरे महजनी
पनिया पाताल के
उहो जीवा काल के
मार गुलेला गाल पर
रोक लिया रुमाल पर

2.    
अटकन-मटकन दे दे मटकन
खैरा-गोटी रस-रस डोले
मस-मास करेला फूले
नम बताओ अमुआ गोटी, जमुआ गोटी
तेतरी सोहाग गोटी
आग लगाई खीर पकाई
मीठी खीर कवन खए
भैया खाए बहिनी खाए
कान पकड़कर ले जा महुआ डाल
तब जाओगी गंगा पार

3.    
तकली रानी तकली रानी
कैसी नाच रही मनमानी
गुनगुन-गुनगुन गीत सुनाती
सूतों का ये ढेर लगाती
सूतो से यह कपड़े बनते
जे पहन से बाबू बनते

4.    
चन्दा मामा चन्दा मामा
लगते कितने प्यारे हो
जगमग जगमग सदा चमकते
तुम आँखों के तारे हो

5.    
रेल हमारी लिए सवारी
काशी जी से आई है
उत्तम चावल और मिठाई
लाद वहां से लाई है

6.    
हुआ सवेरा हुआ सवेरा
अब तो भागा दूर अन्धेरा
छोड़ घोंसला पंक्षी भागे
जो सोवे थे वो भी जागे
आसमान में लाली छाई
धरती पर उजलाई फैली
चहचह-चहचह
चिडि़या चहक रही है
गुमगुम गुमगुम
गुही गमक रही है
फुदक-फुदक के डाली-डाली
शोर मचाती कोयल काली
गायों-भैंस को चारा खिला रहा है
हँस-हँस के झाडू वह चला रहा है

7.    
सवन महुइया के झिलमिल अन्धेरिया
बेंगवा साजे ला बरतिया...बेंगवा साजे ला बरतिया
चुंटी के बिआह भइले, चंुटवा बजनिया
बेंगवा साजे ला बरतिया...बेंगवा साजे ला बरतिया
नव सौ के बाजा कइनी गिरगिट नचनिया
लोटनी खींचे ले रसरिया....लोटनी खींचे ले रसरिया

सवन महुइया के झिलमिल अन्धेरिया
बेंगवा साजे ला बरतिया...बेंगवा साजे ला बरतिया

1 comment:

Rahul Singh said...

एक से बढ़ कर एक.

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...